दुनिया करती है मिथिला पेंटिंग का सम्मान ! कुछ यूं बिहार ने रचा इतिहास 

बिहार की कहानी और उसके चर्चित इतिहास को चित्र का रूप देकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने वाले मिथिला पेंटिंग के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में भी मशहूर है और इस पेंटिंग की चर्चा हर उस इंटरनेशनल सेमिनार में की जाती है जहां विश्व के कोने-कोन से लोग अपनी संस्कृति को दिखाने आते हैं।

बिहार का इतिहास जितना पुराना है उतना ही बिहार की कुछ ऐसी रचनाएं हैं जिनको आज  पूरा विश्व स्वीकार करता है। बिहार के हर कोने में कुछ ऐसे चल-चित्र मौजूद हैं जो बिहार की परिभाषा को ही बदल देते हैं। बिहार की कहानी और उसके चर्चित इतिहास को चित्र का रूप देकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने वाले मिथिला पेंटिंग के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में भी मशहूर है और इस पेंटिंग की चर्चा हर उस इंटरनेशनल सेमिनार में की जाती है जहां विश्व के कोने-कोन से लोग अपनी संस्कृति को दिखाने आते हैं। जी हाँ मिथिला पेंटिंग जिसे मधुबनी पेंटिंग भी कहा जाता है, जो की पुरे बिहार की शान मानी जाती है।  इस पेंटिंग से जुड़े कुछ ऐसे अनोखे तथ्य हैं जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सुना होगा। आज हम आपको मिथिला पेंटिंग से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक बाते बताने वाले हैं जिसके बाद आपकी  इस चित्रकला को लेकर दिलचस्पी और बढ़ जायेगी।  

ऐसे हुआ मिथिला पेंटिंग का जन्म 

बिहार में उसकी परंपरा और उसके इतिहास को एक चित्र के माध्यम से दर्शाने का काम काफी पुराना है। मिथिला पेंटिंग का जन्म बिहार के एक छोटे से जिले मधुबनी में हुआ जिसे मिथलांचल के नाम से भी जाना जाता है।  और ये वही नगरी है जहां माँ सीता का जन्म हुआ था और इसी कारण माँ सीता को मिथिला नंदनी भी कहते हैं। आपको बता दें कि मिथिला पेंटिंग के ज़रिये ही पूर्ण राम-विवाह को भी दर्शाया गया था।  इस चित्रकला को आधुनिक युग में पहली बार सन 1934 में देखा गया। जब बिहार में भूकंप आने के कारण घरों का निरक्षण करते वक़्त  विलियम जी आर्चर ने पहली बार इस पेंटिंग को घरों के दीवारों पर बनें हुए देखा था।  

इन राज्यों में मिथिला पेंटिंग की परम्परा 

मधुबनी पेंटिंग के जनक की बात की जाए तो राजा जनक ने सीता स्वयंबर के दौरान सैंकड़ों लोगों के द्वारा पुरे मिथलांचल को इस चित्र से सजाया था।  जिस दौरान इन चित्रों के अंदर देवी देवताओं को दर्शाया गया।  जिसके बाद ही बिहार के राज्य जैसे मधुबनी, दरभंगा , समस्तीपुर , मुज्जफ्फरपुर  और नेपाल में अब मौजूद जनकपुर में इस चित्र को बनाकर घरों को सजाया जाता है।  आपको बता दें की मधुबनी चित्रकला को 1969 में आधिकारिक मान्यता मिली थी। और इस पेंटिंग को बनाने में महिलाओं का सबसे बड़ा योगदान है।  

स्वच्छ भारत अभियान में मिथिला पेंटिंग का योगदान 

मिथिला पेंटिंग के ज़रिये स्वच्छ भारत अभियान को भी खूब बढ़ावा दिया गया।  जी हाँ स्वच्छ भारत पखवाड़ा के दौरान जब देश के अंदर शौचालय के  निर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिताएं रखी गयी थी। तब जिस शौचालय को जितना सुन्दर बनाया जाएगा उसको पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। जिसमें बिहार ने शौचालयों पर मधुबनी पेंटिंग कर इस प्रतियोगिता को अपने नाम भी किया।आपको ये जानकर काफी हैरानी होगी की मधुबनी रेलवे स्टेशन को पुरे मिथिला पेंटिंग से सजा दिया गया है।  इतना ही नहीं बल्कि इस स्टेशन से कई मीलों दूर तक दीवारों पर आपको ये चित्रकला दिख ही जायेगी।  इस पैंटनिंग को महिलाएं अपनी उँगलियों का इस्तेमाल कर बनाती हैं।  और इस पेंटिंग में खूब ही चटक रंगों का इस्तेमाल होता है।

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